देहरादून। एक बार फिर से दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान के सत्संग सभागार में बुलन्द हुए दिव्य जयघोष। अवसर था रविवारीय सत्संग-प्रवचनों एवं मधुर भजन-संर्कीतन के कार्यक्रम का। संस्थान के संस्थापक-संचालक सदगुरू आशुतोष महाराज की शिष्या साध्वी विदुषी ममता भारती ने भक्तजनों के समक्ष अपने प्रवचनों के मध्य बताया कि मनुष्य का जीवन अनेक प्रकार की विसंगतियों तथा द्वंदों से परिपूर्ण जीवन है। मानव जन्म लेकर भी मनुष्य अपने उस परम लक्ष्य के प्रति सर्वथा अनभिज्ञ रह जाता है, जिसे पूर्ण करने के लिए उसे मानव का अनमोल शरीर प्राप्त हुआ करता है। जन्मों-जन्मों के संस्कारों से ग्रसित जीवन लेकर वह संसार के मायावी कुचक्रों में फंसकर समूचा जीवन व्यर्थ गंवा दिया करता है। सौभाग्य से यदि जीवन में महापुरूषों का सत्संग उसे प्राप्त हो जाए तो फिर वह अपने इसी मानव तन में रहकर अपने चौरासी के चक्रों से मुक्ति पा जाता है। बड़ी बात है कि पूर्ण ब्रह्मनिष्ठ संत-सदगुरू उसे प्राप्त हो जाएं और गुरू प्रदत्त पावन ‘ब्रह्मज्ञान’ के आलोक मंे उसका जीवन संवर जाए। धूल-मिट्टी में सना बालक जिस प्रकार जब माँ के समक्ष आता है तो माँ उससे घृणा नहीं करती अपितु उसे धो-पांेछ कर नहला-धुला कर स्वच्छ कर देती है ठीक एैसे ही पूर्ण गुरू भी होते हैं। भक्त वत्सल सदगुरू चूंकि अंर्तयामी हुआ करते हैं और अपने शरणागत शिष्य के समस्त दोषों, सभी विकारों रूपी धूल-मिट्टी को अपनी तीक्ष्ण दिव्य दृष्टि से देख लेते हैं और उसे अपने पावन ब्रह्मज्ञान के द्वारा मैले से स्वच्छ और सुन्दर कर दिया करते हैं। आवश्यकता है कि शिष्य अपने सदगुरू को पुरूषार्थ का सशक्त आधार प्रदान कर दे। शिष्य को विकारों की गहरी खाई से निकलने के लिए अपना हाथ तो ऊपर गुरू की ओर बढ़ाना ही होगा ताकि गुरूदेव उसे उस दलदल से बाहर खींच सकें। गुरूदेव इतने कृपा सिंधु होते हैं कि गन्दगी से भरे उस शिष्य के हाथ को अविलम्ब थाम लेते हैं, यह भी नहीं देखते कि इससे उनके अपने हस्तकमल में भी उसकी गन्दगी लग जाएगी, वह तो अहैतुकी कृपावश मात्र शिष्य का परम कल्याण कर देने की उत्कंठा रखते हैं। मनुष्य के भीतर हर समय परमात्मा का परम प्रकाश प्रज्जवलित हो रहा है। सदगुरूदेव उस परम प्रकाश का प्रकटिकरण कर शिष्य को उसके साथ जोड़ दिया करते हैं। जिस प्रकार अंधकार को समाप्त करने के लिए अंधेरे की निंदा करने की आवश्यकता नहीं है, बस! एक छोटा सा प्रज्जवलित दीपक रख देने भर से अंधकार स्वतः ही समाप्त हो जाएगा। कबीर साहब गुरू आज्ञा में चलने वाले एैसे ही शिष्य के सम्बन्ध में सुन्दर बात कहते हैं-‘‘गुरू को सिर पर राखिए, चले जो आज्ञा मांहिं, कहे कबीर तिस दास को तीन लोक डर नाहिं। प्रसाद का वितरण कर साप्ताहिक कार्यक्रम को विराम दिया गया।