देहरादून। हिमालय सप्ताह के उपलक्ष्य में भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (आईआईएसडब्ल्यूसी), देहरादून ने “उत्तराखंड में अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ और आपदाएँ : प्रभाव, तैयारी और उपाय” विषय पर एक विचार-मंथन सत्र का आयोजन किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि पद्मभूषण से सम्मानित एवंहेस्कोके संस्थापकडॉ. अनिल पी. जोशी रहे। उन्होंने हिमालय के महत्व पर प्रकाश डालते हुए वहन-क्षमता आधारित विकास की आवश्यकता बताई और उपभोक्ताओं के दृष्टिकोण को पारिस्थितिक संतुलन एवं सतत विकास के अनुरूप ढालने पर बल दिया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में. मनु गौड़ (सदस्य, एसएसी उत्तराखंड; अध्यक्ष, टैक्सएबी; सदस्य, ड्राफ्टिंग कमेटी, यूसीसी) तथा अनूप नौटियाल (संस्थापक, सस्टेनेबल डेवलपमेंट फॉर कम्युनिटीज, देहरादून) उपस्थित रहे। इं. गौर ने दीर्घकालिक स्थिरता हेतु लक्षणों के बजाय मूल कारणों पर ध्यान देने की आवश्यकता बताई। वहीं, श्री नौटियाल ने अनियंत्रित मानवीय हस्तक्षेपों को प्राकृतिक तंत्रों को असंतुलित करने और आपदाओं को जन्म देने वाला बताया तथा अपनी संस्था की कुछ महत्त्वपूर्ण प्रकाशन सामग्रियाँ साझा कीं।
भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थानके निदेशक डॉ. एम. मधु ने अत्यधिक वर्षा, बादल फटने तथा एकीकृत प्रबंधन और संरक्षण रणनीतियों की आवश्यकता पर चिंता जताई। कार्यक्रम के आयोजन सचिव एवं प्रधान वैज्ञानिकडॉ. एम. मुरुगनंदमने अतिथियों का स्वागत किया और एजेंडा प्रस्तुत किया। विचार-मंथन में110 से अधिक प्रतिभागियोंने भाग लिया, जिनमें विभिन्न संगठनों के वैज्ञानिक, विशेषज्ञ, उत्तराखंड राज्य के विभागीय अधिकारी तथा लगभग 25 ऑनलाइन प्रतिभागी शामिल थे। प्रमुख प्रतिनिधियों में आईआईआरएस, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी, जेडएसआई, एनआईआरडीपीआरटीआर गुरुग्राम और विभिन्न सरकारी विभाग सम्मिलित रहे। मुख्य प्रतिभागियों मेंडॉ. पी.के. नाथएवं टीम (एनआईआरडीपीआरटीआर, गुरुग्राम), डॉ. सुरेश कुमार (ग्रुप हेड, आईआईआरएस), डॉ. पंकज चौहान (वैज्ञानिक, डब्ल्यूआईएचजी, देहरादून), चित्रा कनोजिया (संयुक्त निदेशक, डीई एंड एसडीपी, यूके सरकार, देहरादून), प्रो. (डॉ.) नरेंद्र कुमार गोंटिया (पूर्व-वीसी एवं डीन, जेएयू, जूनागढ़), डॉ. ए.के. श्रीवास्तव (निदेशक, भाकृअनुप-वीपीकेएएस अल्मोड़ा, अवकाशप्राप्त), इं. सुधीर कुमार (एसई, सीडब्ल्यूसी), पूरन बर्तवाल, राजेश कुमार (पीएसआई), डॉ. सौम्या प्रसाद एवं रमन कुमार (नेचुरल साइंस इनिशिएटिव्स), हरी राज सिंह एवं आर.के. मुखर्जी (स्पेक्स, देहरादून) शामिल थे। चर्चाओं का केंद्र हिमालय में बढ़तीअत्यधिक वर्षा और उनकी तीव्रतातथा उसके खेती, पशुपालन, मत्स्य, वानिकी, अवसंरचना और आजीविकाओं पर पड़ने वाले व्यापक प्रभाव रहे। प्रतिभागियों ने विकास योजनाओं में जनमत को सम्मिलित करने, पूर्व चेतावनी तंत्रों को सुदृढ़ बनाने, बहु-क्षेत्रीय तैयारी, लचीले अवसंरचना विकास और समुदाय-आधारित आपदा जोखिम न्यूनीकरण पर बल दिया। यह भी रेखांकित किया गया कि ज्ञान उन संस्थाओं तक पहुँचाना आवश्यक है जो वास्तविक रूप से क्षेत्रीय कार्य कर रही हैं। कार्यक्रम का समन्वयनडॉ. मुरुगनंदमऔर उनकी टीम दृइं. एस.एस. श्रीमाली, डॉ. रमा पाल, डॉ. सादिकुल इस्लाम, श्री एम.एस. चौहान, सोनिया चौहान और इं. अमित चौहान (पीएमई एवं केएम यूनिट, आईआईएसडब्ल्यूसी, देहरादून)ने किया। अतिथि सहभागिता का समन्वय ई. अमित चौहान द्वारा किया गया। कार्यक्रम के दौरान आईआईएसडब्ल्यूसी के प्रमुख वैज्ञानिकों एवं अधिकारियोंडॉ. चरन सिंह, डॉ. आर.के. सिंह, डॉ. जे.एम.एस. तोमर (प्रभागाध्यक्ष), तथा डॉ. राजेश कौशल, डॉ. विभा सिंगल और डॉ. अनुपम बड़ (प्रधान एवं वरिष्ठ वैज्ञानिक) ने सक्रिय रूप से सहभागिता करते हुए विचार-विमर्श किया।