देहरादून। भारत का कृषि क्षेत्र देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति का केंद्र है जो खाद्य सुरक्षा, ग्रामीण सशक्तिकरण और रोजगार सृजन का एक सशक्त माध्यम है। देश की आधी से ज्यादा जनसंख्या के कृषि और उससे संबंधित गतिविधियों से जुड़ी हैं, इसलिए यह क्षेत्र सतत आजीविका स्थानीय उद्यमों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। हाल के वर्षों में पीएम-किसान, पीएमएफबीवाई, कृषि अवसंरचना कोष और प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना का औपचारिकीकरण (पीएमएफएमई) जैसी सरकारी पहलों ने इस परिवर्तन को गति प्रदान की है। सिंचाई, अवसंरचना, फसल विविधीकरण और आय सहयोग पर ध्यान केंद्रित करके, इन कार्यक्रमों ने लाखों किसानों के लिए विकास के नए अवसर प्रकट करते हुए, खेती को स्थिरता के निकट ला दिया है।
इन राष्ट्रीय प्रयासों के पूरक के रूप में, पंजाब नैशनल बैंक (पीएनबी) समावेशी और अनुकूलित वित्तीय समाधानों के माध्यम से ग्रामीण आघात सहनीयता को सुदृढ़ करने का प्रयास जारी रखे हुए है। किसान क्रेडिट कार्ड और एसएचजी वित्तपोषण से लेकर कृषि-अवसंरचना ऋण और संबद्ध क्षेत्रों के लिए सहयोग तक, बैंक किसानों को अपने कार्यों का विस्तार करने, आधुनिक तकनीकों को अपनाने और व्यापक बाजारों तक पहुंचने में सशक्त बना रहा है।
पंजाब नेशनल बैंक के एमडी एवं सीईओ अशोक चंद्र का कहना है कि भारतीय कृषि को निर्वाह से स्थायित्व की ओर ले जाने के लिए, इसे बुवाई और कटाई के चक्र से आगे निकलना होगा। भविष्य एक मूल्य-श्रृंखला-तैयार कृषि अर्थव्यवस्था में निहित है, जिसे मजबूत ग्रामीण अवसंरचना , प्रौद्योगिकी अपनाने और सशक्त बाजार लिंकेज द्वारा समर्थित किया जाएगा। कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, कृषि यंत्रीकरण और कस्टम हायरिंग केंद्रों में रणनीतिक निवेश, कटाई के बाद होने वाले नुकसान को कम करने, मूल्य प्राप्ति में सुधार लाने और ग्रामीण रोज़गार सृजन के लिए महत्वपूर्ण हैं। इस प्रयास में, कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ) पूंजी-सघन कृषि-परियोजनाओं का सहयोग कर एक उत्प्रेरक भूमिका निभाता है जो उत्पादकता और समृद्धि दोनों को बढ़ा सकती हैं। अवसंरचना के साथ-साथ, ग्रामीण उद्यमों का उदय भारत के कृषि परिदृश्य को नया रूप दे रहा है। प्रधानमंत्री सूक्ष्म खाद्य प्रसंस्करण उद्यम योजना का औपचारिकीकरण (पीएमएफएमई) प्रायः परिवार-संचालित खाद्य व्यवसायों-जिनमें से कई महिलाओं द्वारा संचालित हैं-को ऋण पहुंच, अवसंरचना अनुदान और गुणवत्ता प्रमाणन के सहयोग से सशक्त बना रही है। ये इकाइयाँ, जो कभी अनौपचारिक कुटीर उद्योगों में निहित थीं, अब प्रतिस्पर्धी, बाजार-उन्मुख उद्यमों के रूप में विकसित हो रही हैं जिससे न केवल कृषि उपज का मूल्यवर्धन करती हैं बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार सृजन को भी बढ़ावा देती हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि ग्रामीण भारत का आर्थिक बनावट अब केवल पारंपरिक खेती तक सीमित नहीं रही । इससे संबद्ध और उभरते क्षेत्रों जैसे प्रीसिजन फार्मिंग, एक्वाकल्चर, हाई-टेक बागवानी, खाद्य और कृषि-प्रसंस्करण का तेजी से विकास हो रहा है। युवा ग्रामीण उद्यमी महत्वाकांक्षा और सक्रियता के साथ इन क्षेत्रों में तेज़ी से आगे बढ़ रहे हैं। उन्हें केवल ऋण की ही नहीं, बल्कि लक्षित सहयोग, क्षमता निर्माण और सहायता की भी आवश्यकता है। इन क्षेत्रों में नवाचार का समर्थन मोनो-क्रॉपिंग के जोखिमों को कम करने, आय विविधीकरण को बढ़ाने और ग्रामीण उद्यमों की एक नई लहर लाने में मदद कर सकता है।