देहरादून। भारत सहित विश्व के अनेक बड़े देशों में लोकतांत्रिक प्रणाली शासन व्यवस्था का प्रमुख अंग है परन्तु प्रजातांत्रिक, लोकतांत्रिक प्रणाली के प्रमुख सूत्रधार भगवान विष्णु के छठवें अवतार भगवान परशुराम थे। यह कथन है साहित्य रत्नाकर (हिन्दी विश्व विद्यापीठ) की मानद उपाधि धारक, हिन्दी समाचार पत्र सांध्य दैनिक देवपथ के सम्पादक वरिष्ठ पत्रकार पं0 रामेश्वर दत्त शर्मा का। अपने कथन की पुष्टि में पं0 शर्मा ने बताया कि युद्ध में परशुराम के हाथों आततायी राजा सहसार्जुन मारा गया था तथा अन्य इक्कीस राजा परास्त हो गये थे तब एकमात्र विजयी बचे भगवान परशुराम ने स्वयं सम्राट बनना स्वीकार नहीं किया।
पं0 शर्मा के अनुसार भगवान परशुराम ने लोकतांत्रिक प्रणाली की नींव रखते हुए आश्रमवासी ऋषि, मुनियों तथा युवा ब्रह्मचारी बटुकों की एक सभा आयोजित की और परिषद की स्थापना कर महर्षि कश्यप् को राजा बनाया। इस प्रकार परशुराम ने एक देश, एक वेश, एक ध्वज और एक विचारधारा का सूत्रपात किया। पं0 रामेश्वर दत्त शर्मा ने भगवान परशुराम को क्षत्रिय द्रोही बताये जाने का पुरजोर खण्डन किया। उनका कहना है कि महाभारत काल के भीष्म, कर्ण, सहित अनेक क्षत्रिय उनके शिष्य थे वहीं रामायण काल के राजा जनक, राजा दशरथ आदि उनके समर्थक थे। भगवान परशुराम केवल सहस्त्रार्जुन जैसे आततायी राजाओं के शत्रु थे। पं0 शर्मा ने बताया कि भगवान विष्णु के छठे अवतार परशुराम परम त्यागी, अखण्ड ब्रह्मचारी, महाबली, महायोद्धा, परम तपस्वी, शस्त्र-शास्त्रों के महान ज्ञाता, ओजस्वी, मनस्वी थे जिनका जीवन अथाह सागर है। भगवान परशुराम का जीवन चरित्र जितनी बार भी पढ़ा जायेगा उतनी ही बार अनेक आधुनिक समस्याओं के निदान मिलते जायेंगे।