बहुभाषी, समावेशी शिक्षा अब व्यापक स्तर पर साकारः धर्मेंद्र प्रधान

editor

देहरादून। एनईपी के पाँच वर्ष पूरे होने पर केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने कहा कि भाषा के चयन से लेकर कौशल पर बल तक, इसकी अवधारणाओं ने कक्षा के अनुभव को मूल रूप से बदल दिया है। 2020 में भारत ने केवल एक नई नीति नहीं अपनाई, बल्कि एक प्राचीन आदर्श को फिर से जीवंत किया। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) ने सीखने को राष्ट्र निर्माण का आधार बनाया और इसे हमारी सभ्यतागत परंपराओं से जोड़ा। स्वर्गीय डॉ. के. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में तैयार की गई यह नीति इतिहास की सबसे व्यापक जन-सहभागिता वाली नीति-निर्माण प्रक्रिया में से एक थी। यह एक ऐसा दूरदर्शी रूपरेखा थी जो सांस्कृतिक मूल्यों में निहित था। यह एक ऐसी शिक्षा व्यवस्था की कल्पना थी जो रटने की प्रवृत्ति, कठोर ढाँचों और भाषाई ऊँच-नीच से परे हो। पाँच वर्षों में एनईपी का असर केवल नीतियों तक नहीं, बल्कि कक्षाओं तक स्पष्ट रूप से दिखाई देता है। अब प्राथमिक कक्षाओं में खेल आधारित शिक्षण, रटने की पद्धति की जगह ले चुका है; बच्चे अपनी मातृभाषा में सहजता से पढ़ रहे हैं; छठी कक्षा के विद्यार्थी व्यावसायिक प्रयोगशालाओं में हाथों-हाथ कौशल सीख रहे हैं। अनुसंधान संस्थानों में भारत का पारंपरिक ज्ञान आधुनिक विज्ञान के साथ संवाद कर रहा है। एनईपी की सोच स्टेम क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और वैश्विक मंचों पर भारतीय संस्थानों की उपस्थिति में भी झलकती
है।
एनईपी ने यह स्पष्ट किया कि भाषा कोई बाधा नहीं, बल्कि सशक्तिकरण का माध्यम है। 117 भाषाओं में प्राइमर विकसित किए गए हैं और भारतीय सांकेतिक भाषा को एक विषय के रूप में शामिल किया गया है। भारतीय भाषा पुस्तक योजना और राष्ट्रीय डिजिटल भंडार जैसी योजनाएं
भाषाई और सांस्कृतिक ज्ञान को लोकतांत्रिक बना रही हैं। नेशनल कुररिकुलम फ्रेमवर्क (एनसीएफ) और कक्षा 1 से 8 की नई किताबें अब जारी हो चुकी हैं। प्रेरणा (च्त्म्त्छ।) एक सेतु कार्यक्रम है जो छात्रों को नई पाठ्यचर्या में सहजता से ढालने के लिए मार्गदर्शन करता है, ताकि वे अभिभूत न हों, बल्कि हर चरण में सहयोग प्राप्त करें। समग्र शिक्षा और पीएम पोषण जैसी योजनाओं ने लगभग सार्वभौमिक नामांकन को संभव बनाया है। एनईपी का प्रभाव वंचित समूहों तक भी पहुँचा है। 5,138 से अधिक कस्तूरबा गांधी बालिका विद्यालयों में 7.12 लाख से अधिक वंचित समुदायों की बालिकाएं नामांकित हैं। धर्ती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के तहत 692 और पीवीटीजी छात्रों के लिए 490 से अधिक छात्रावास स्वीकृत किए गए हैं।
प्रशस्त कार्यक्रम के माध्यम से दिव्यांगता की पहचान कर शिक्षा व्यवस्था को और अधिक समावेशी व सशक्त बनाया गया है।
एनईपी 2020 के परिवर्तन का एक प्रमुख स्तंभ हैं 14,500 पीएम-श्री स्कूल जो आधुनिक, समावेशी और पर्यावरण के अनुकूल हैं। ये विद्यालय एनईपी के
विजन के अनुरूप आदर्श मॉडल स्कूल बन रहे हैं, जो बुनियादी ढाँचे और शिक्षण पद्धति दोनों को पुनर्परिभाषित कर रहे हैं। विद्यांजलि प्लेटफॉर्म ने 8.2 लाख स्कूलों को 5.3 लाख से अधिक वालंटियर्स और 2,000 सीएसआर पार्टनर्स से जोड़ा है, जिससे 1.7 करोड़ छात्रों को सीधा लाभ मिला है। उच्च शिक्षा में कुल नामांकन 3.42 करोड़ से बढ़कर 4.46 करोड़ हो गया हैकृ30.5þ की बढ़ोत्तरी। इनमें लगभग 48þ छात्राएं हैं। महिला पीएचडी  नामांकन 0.48 लाख से बढ़कर 1.12 लाख हो गया है। एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक छात्रों का बढ़ता नामांकन उच्च शिक्षा में समावेशिता का ऐतिहासिक संकेत है। महिला जीईआर लगातार छह वर्षों से पुरुषों से अधिक रहा है। मल्टीपल एंट्री-एग्जिट, अकादमिक बैंक ऑफ़ क्रेडिट्स और नेशनल क्रेडिट फ्रेमवर्क जैसे नवाचारों ने शिक्षा को विकल्पों से भरपूर और छात्र-केंद्रित बनाया है। 21.12 करोड़ अपारआईडी  उपलब्ध कराई गई हैं। 153 विश्वविद्यालयों में मल्टीपल एंट्री और 74 में एग्जिट विकल्प उपलब्ध हैंकृअब सीखना क्रमबद्ध नहीं, बल्कि मॉड्यूलर है।
एनईपी के अनुसंधान और नवाचार पर ज़ोर ने भारत के ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स को 81वें स्थान से 39वें तक पहुंचाया है। 400 से अधिक उच्च शिक्षा संस्थानों में 18,000 से अधिक स्टार्टअप इनक्यूबेट किए गए हैं। अनुसंधान छत्थ्, च्डत्थ् 2.0, और घ्6,000 करोड़ की वन नेशन वन सब्सक्रिप्शन योजना शोध को विकेंद्रीकृत और सुलभ बना रही हैं। ैंलंउ और ैंलंउ च्सने जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर 5.3 करोड़ से अधिक नामांकन हो चुके हैं। क्प्ज्ञैभ्। और च्ड म-टपकलं के 200$ क्ज्भ् चैनलों के माध्यम से गुणवत्तापूर्ण सामग्री देश के हर कोने में उपलब्ध हो रही है। द्विवार्षिक प्रवेश, डुअल डिग्री जैसी व्यवस्थाएं उच्च शिक्षा को और अधिक समावेशी, बहुविषयक और उद्योगोन्मुखी बना रही हैं। फै वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2026 में भारत के 54 संस्थान शामिल हुए हैं, जबकि 2014 में केवल 11 थे। क्मांपद, ॅवससवदहवदह, और ैवनजींउचजवद जैसे वैश्विक विश्वविद्यालय भारत में कैंपस स्थापित कर रहे हैं। परिवर्तन की इस यात्रा का उत्सव अखिल भारतीय शिक्षा समागम के माध्यम से मनाया जा रहा है, लेकिन इसका मूल्यांकन शिक्षार्थियों, शिक्षकों और अभिभावकों के शांत आत्मविश्वास में हो रहा है। हमें अपने परिसरों को हराभरा बनाना, महत्वपूर्ण अनुसंधान अवसंरचना का विस्तार करना और सीखने के परिणामों को और अधिक गहरा करना जारी रखना होगा। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में शिक्षा केवल एक नीति नहीं, बल्कि सबसे बड़ा राष्ट्रीय निवेश बन चुकी है। जहाँ शिक्षा है, वहीं प्रगति है। एक अरब जागरूक और सशक्त नागरिक केवल जनसांख्यिकीय लाभांश नहीं हैं, बल्कि नए भारत का सुपरनोवा हैं।

Leave a Comment