पीआरएसआई देहरादून चैप्टर के अध्यक्ष बने रवि बिजारनिया

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देहरादून। पीआरएसआई देहरादून चैप्टर की आमसभा में रवि बिजारनिया को सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुना गया है। श्री बिजारनिया वर्तमान में सूचना विभाग में उपनिदेशक पद पर कार्यरत हैं। इसी प्रकार अनिल सती को सचिव और सुरेश चन्द्र भट्ट को कोषाध्यक्ष के साथ ही डॉ. ए. एन. त्रिपाठी उपाध्यक्ष, राकेश डोभाल संयुक्त मंत्री के पद पर फिर से चुना गया है।
इस अवसर पर पीआरएसआई देहरादून चैप्टर के नव नियुक्त अध्यक्ष रवि बिजारनिया ने कहा कि पीआरएसआई संगठन सरकार की योजनाओं को आमजन तक पहुंचाने के लिए सेतु का काम करेगा। इसके लिए सूचना तकनीक और सोशल मीडिया का विशेष रूप से उपयोग किया जायेगा। लोकहित और सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों पर नियमित तौर पर कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। उत्तराखंड की संस्कृति, पर्यटन, व्यंजन, को पीआरएसआई के राष्ट्रव्यापी नेटवर्क के माध्यम से प्रचारित करने का प्रयास किया जायेगा। श्री बिजारनिया ने सभी सदस्यों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि प्रदेश के सभी विभागों और संगठनों के जनसंपर्क से जुड़े लोगों को संगठन से जोड़ने की कोशिश की जाएगी।
इस अवसर पर निवर्तमान अध्यक्ष अमित पोखरियाल ने सभी सदस्यों का धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने कहा कि अध्यक्ष के रूप में उनके द्वारा विभिन्न कार्यक्रम किये गए है। उन्होंने नवनिर्वाचित अध्यक्ष और कार्यकारिणी के सदस्यों को बधाई दी। इस अवसर पर पीआरएसआई देहरादून चैप्टर के पूर्व अध्यक्ष विमल डबराल, एनसी मेंबर अनिल वर्मा, रजनीश त्रिपाठी, सुश्री जॉली, सदस्य वैभव गोयल, ज्योति नेगी, शिवांगी सिंह, संजय सिंह, महेश कुमार, आकाश शर्मा, सुधाकर भट्ट, आलोक तोमर, प्रताप सिंह बिष्ट, डॉ. पीसी जोशी आदि उपस्थित थे। पीआरएसआई देहरादून चैप्टर के कोषाध्यक्ष सुरेश चंद्र भट्ट द्वारा सभी का स्वागत किया गया, जबकि सचिव अनिल सती द्वारा कार्यक्रम का संचालन किया गया।
पब्लिक रिलेशन सोसायटी ऑफ इंडिया (पीआरएसआई) की स्थापना 1958 में की गई थी। ये जनसंपर्क से जुड़े लोगों का देश का सबसे बड़ा संगठन है। इसमें सरकारी और गैर सरकारी क्षेत्र के जनसंपर्क से जुड़े लोग शामिल हैं। इसका उद्देश्य रणनीतिक प्रबंधन में जनसंपर्क प्रोफेशन को आगे बढ़ाना है। देश भर में 25 चैप्टर और 4 हजार से अधिक सदस्यों वाला ये राष्ट्रीय संगठन पीआर प्रोफेशनल को प्रभावी प्लेटफार्म उपलब्ध कराता है। देहरादून चैप्टर की स्थापना 1990 में की गई थी।

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