आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के प्रकरण में 16वें न्यायधीश ने भी खुद को किया अलग

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देहरादून। देश की न्याय पालिका के लिए यह गंभीर सवालों का दौर है। जिसके जवाब भी खुद न्यायपालिका ही दे सकती है। क्या उत्तराखंड कैडर के वरिष्ठ आईएफएस अधिकारी संजीव चतुर्वेदी के प्रकरणों पर सुनवाई करना इतना कठिन है, कि एक के बाद एक कर न्यायाधीश उनके मामलों से खुद को अलग करते जा रहे हैं। देश के इतिहास में ऐसा कभी नहीं हुआ। अब 16वें न्यायधीश ने भी संजीव चतुर्वेदी के प्रकरण से खुद को अलग कर लिया है। उत्तराखंड हाई कोर्ट के वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस अलोक वर्मा ने 16वें न्यायाधीश के रूप में चतुर्वेदी की ओर से दायर अवमानना याचिका पर सुनवाई खुद को अलग कर लिया। यह याचिका केंद्रीय प्रशासनिक अधिकरण (कैट) के सदस्यों और रजिस्ट्री खिलाफ नैनीताल हाई कोर्ट के स्थगन आदेश की जानबूझकर अवहेलना करने के आरोप में दायर की गई थी।
इससे पहले हाल में ही आईएफएस अधिकारी और मशहूर व्हिसलब्लोअर संजीव चतुर्वेदी से जुड़े एक मामले में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के ही वरिष्ठ न्यायाधीश न्यायमूर्ति रवीन्द्र मैठाणी ने भी उनकी अवमानना याचिका की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया था। 20 सितंबर को दिए अपने आदेश में न्यायमूर्ति मैठाणी ने केवल इतना लिखा कि मामला किसी अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध किया जाए, जिसका वे सदस्य न हों। आदेश में अलग होने का कोई कारण दर्ज नहीं किया गया, जिससे यह घटनाक्रम और भी असामान्य हो गया था।
अब वरिष्ठ न्यायाधीश जस्टिस अलोक वर्मा के सुनवाई से अलग होने जाने के बाद वह उत्तराखंड उच्च न्यायालय के चौथे न्यायाधीश हैं, जिन्होंने चतुर्वेदी के मामलों की सुनवाई से स्वयं को अलग किया है। जस्टिस वर्मा से पहले जस्टिस मैठाणी और उनसे पहले मई 2023 में न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल ने चतुर्वेदी की अप्रैजल रिपोर्ट से जुड़े मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग किया था और फरवरी 2024 में न्यायमूर्ति मनोज तिवारी ने उनके सेंट्रल डेप्युटेशन मामले की सुनवाई से स्वयं को अलग किया था। इन तीनों न्यायाधीशों में से किसी ने भी अपने अलग होने के आदेश में कारण दर्ज नहीं किया।

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